नकदी, आग और साजिश: जस्टिस वर्मा विवाद की पूरी कहानी

by eMag360

जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला हाल के दिनों में भारतीय न्यायपालिका में एक चर्चित और विवादास्पद मुद्दा बन गया है। यह घटनाक्रम न केवल कानूनी हलकों में बल्कि आम जनता के बीच भी बहस का विषय बना हुआ है। इस लेख में जस्टिस वर्मा के करियर, उनके सरकारी आवास में आग की घटना, नकदी बरामदगी के दावों, और इस मामले में हुई नवीनतम प्रगति को विस्तार से और तथ्यात्मक रूप से प्रस्तुत किया जाएगा। यह लेख 23 मार्च 2025 तक की उपलब्ध जानकारी पर आधारित है और इसमें कोई काल्पनिक तत्व शामिल नहीं है।

जस्टिस यशवंत वर्मा का करियर

जस्टिस यशवंत वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम (ऑनर्स) और मध्य प्रदेश के रीवा विश्वविद्यालय से एलएल.बी की डिग्री हासिल की। 8 अगस्त 1992 को वे वकील के रूप में नामांकित हुए और इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपनी प्रैक्टिस शुरू की। उनकी नियुक्ति 13 अक्टूबर 2014 को इलाहाबाद हाई कोर्ट में अतिरिक्त जज के रूप में हुई, और 1 फरवरी 2016 को वे स्थायी जज बने। 11 अक्टूबर 2021 को उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट में स्थानांतरित किया गया, जहां वे वरिष्ठता में दूसरे नंबर पर थे और दिल्ली हाई कोर्ट कॉलेजियम के सदस्य भी थे। उनके फैसले मुख्य रूप से कर, संवैधानिक और प्रशासनिक मामलों पर केंद्रित रहे हैं।

विवाद की शुरुआत: आग और नकदी का दावा

14 मार्च 2025 की रात को दिल्ली के लुटियंस जोन में जस्टिस वर्मा के सरकारी बंगले में आग लगने की घटना ने इस पूरे विवाद को जन्म दिया। उस समय जस्टिस वर्मा शहर से बाहर थे, और उनके परिवार ने फायर ब्रिगेड और पुलिस को सूचित किया। आग पर काबू पाने के बाद कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि बंगले के एक कमरे से भारी मात्रा में नकदी बरामद हुई। शुरुआती खबरों के अनुसार, यह नकदी अधजली हालत में बोरे में मिली थी, जिसे फायरकर्मियों ने देखा और अधिकारियों को सूचना दी। यह खबर तेजी से फैली और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना तक पहुंची।

इस घटना ने न्यायपालिका में हड़कंप मचा दिया। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने तत्काल बैठक बुलाई और जस्टिस वर्मा को उनके मूल कोर्ट, इलाहाबाद हाई कोर्ट, में वापस स्थानांतरित करने की सिफारिश की। कुछ सदस्यों ने यह भी सुझाव दिया कि केवल तबादला पर्याप्त नहीं है; उनसे इस्तीफा मांगा जाना चाहिए या उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए।

दिल्ली फायर डिपार्टमेंट का खंडन

मामले में नया मोड़ तब आया जब दिल्ली फायर डिपार्टमेंट के प्रमुख अतुल गर्ग ने 21 मार्च को स्पष्ट किया कि आग बुझाने के दौरान उनकी टीम को कोई नकदी नहीं मिली। उन्होंने कहा, “आग बुझाने के बाद हमने पुलिस को सूचित किया और हमारी टीम मौके से चली गई। हमें कोई नकदी नहीं दिखी।” इस बयान ने शुरुआती दावों पर सवाल उठाए और मामले को और जटिल बना दिया।

सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया और जांच

सीजेआई संजीव खन्ना ने इस मामले को गंभीरता से लिया और 21 मार्च को दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय से प्रारंभिक रिपोर्ट मांगी। 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट की 25 पन्नों की जांच रिपोर्ट को अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक किया, जिसमें जले हुए नोटों की तस्वीरें और वीडियो शामिल थे। रिपोर्ट में कहा गया कि आग वाले कमरे से चार-पांच अधजली गड्डियां मिलीं, जो भारतीय मुद्रा की थीं। चीफ जस्टिस उपाध्याय ने प्रथम दृष्टया राय दी कि इस मामले की गहन जांच जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही जस्टिस वर्मा का जवाब भी जारी किया। जस्टिस वर्मा ने दावा किया कि नकदी उनकी नहीं थी और यह उन्हें फंसाने की साजिश है। उन्होंने कहा, “मेरे या मेरे परिवार ने कभी स्टोर रूम में नकदी नहीं रखी। जिस कमरे में आग लगी, वह एक आउटहाउस था, मुख्य भवन नहीं, जहां हम रहते हैं। यह मुझे बदनाम करने की कोशिश है।”

सीजेआई ने 22 मार्च को तीन जजों की एक कमेटी गठित की, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जी.एस. संधावालिया, और कर्नाटक हाई कोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल हैं। इस कमेटी को इन-हाउस जांच की जिम्मेदारी दी गई है, जो 1999 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई प्रक्रिया के तहत काम करेगी। जस्टिस वर्मा से न्यायिक कार्य वापस ले लिए गए हैं, और उनका प्रस्तावित तबादला भी रोक दिया गया है।

पुलिस और अन्य जानकारी

दिल्ली पुलिस आयुक्त की 16 मार्च की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस वर्मा के बंगले पर तैनात गार्ड ने बताया कि 15 मार्च की सुबह आग वाले कमरे से मलबा और जली हुई वस्तुएं हटा दी गई थीं। चीफ जस्टिस उपाध्याय ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया कि प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट नहीं है कि कमरे में कोई बाहरी व्यक्ति दाखिल हुआ था या नहीं। उन्होंने बंगले में रहने वालों, घरेलू सहायकों, माली, और संभावित सीपीडब्ल्यूडी कर्मियों की जांच का सुझाव दिया।

वर्तमान स्थिति (23 मार्च 2025)

23 मार्च 2025 तक यह मामला अनसुलझा है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जस्टिस वर्मा का तबादला जांच से स्वतंत्र था और इसे अफवाहों से जोड़ना गलत है। जांच कमेटी अभी अपना काम शुरू कर रही है, और इसके नतीजों का इंतजार है। जस्टिस वर्मा फिलहाल न्यायिक कार्यों से अलग हैं, और उनकी ओर से कोई और आधिकारिक बयान नहीं आया है। सोशल मीडिया पर इस मामले को लेकर कई तरह की अटकलें चल रही हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने लोगों से अफवाहों पर ध्यान न देने की अपील की है।

निष्कर्ष

जस्टिस यशवंत वर्मा का यह मामला न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठाता है। एक ओर जहां नकदी बरामदगी की खबरों ने उनकी साख को चुनौती दी, वहीं फायर डिपार्टमेंट और उनके अपने बयानों ने इसे साजिश करार दिया। सुप्रीम कोर्ट की जांच कमेटी के निष्कर्ष ही इस रहस्य को सुलझा सकते हैं। तब तक यह घटना भारतीय न्याय व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण अध्याय बनी रहेगी, जिस पर सभी की नजरें टिकी हैं।

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