मृत्यु के समय मस्तिष्क का व्यवहार: जीवन का अंतिम सच और अनसुलझा रहस्य

by eMag360

मृत्यु एक ऐसी सच्चाई है जो हर इंसान के सामने आती है, फिर भी इसके बारे में हमारा ज्ञान बेहद कम है। यह निश्चित है कि एक दिन सबको जाना है, लेकिन मृत्यु का असली स्वरूप क्या है और उसके बाद क्या होता है, यह आज भी हमारे लिए एक पहेली बना हुआ है। लोग अक्सर सोचते हैं कि मृत्यु बस एक क्षण में हो जाने वाली घटना है, पर सच तो यह है कि यह शरीर और मस्तिष्क में होने वाली कई जटिल प्रक्रियाओं का परिणाम है।

वैज्ञानिक सालों से इस प्रक्रिया को समझने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अभी तक बहुत कुछ अनजाना ही है। तो आइए, हम इस लेख में मृत्यु के समय मस्तिष्क में होने वाली गतिविधियों को समझें और कुछ नई जानकारियों के साथ इसे और गहराई से जानें।


मृत्यु के समय में मस्तिष्क का व्यवहार

मृत्यु के दौरान मस्तिष्क कैसे काम करता है, इस पर हाल ही में एक रोचक अध्ययन हुआ। ‘फ्रंटियर्स इन एजिंग न्यूरोसाइंस’ में प्रकाशित इस शोध में बताया गया कि मृत्यु के समय और उसके ठीक बाद भी मस्तिष्क में गतिविधियां चलती रहती हैं। यह जानकारी तब सामने आई जब एक 87 साल के मिर्गी रोगी की मृत्यु हुई।

उस समय वह इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राफी (ईईजी) मशीन से जुड़ा था, जिसने उसके मस्तिष्क की तरंगों को रिकॉर्ड किया। शोधकर्ताओं ने मृत्यु के आसपास करीब 15 मिनट तक की गतिविधियों को देखा, जिसमें हृदय की धड़कन रुकने से 30 सेकंड पहले और बाद का समय भी शामिल था।

उन्होंने पाया कि मस्तिष्क में गामा, डेल्टा, थीटा, अल्फा और बीटा जैसी तरंगें सक्रिय थीं। ये तरंगें हमारे दिमाग के रोजमर्रा के कामों, जैसे सोचने, याद करने, सपने देखने और ध्यान लगाने में अहम भूमिका निभाती हैं। इस खोज ने उन लोगों के अनुभवों को समझने में मदद की, जो मृत्यु के करीब पहुंचकर वापस आए और जिन्होंने बताया कि उन्हें अपनी जिंदगी की झलकियां दिखीं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि ये तरंगें मृत्यु के आखिरी पलों में यादों को ताजा करने का काम कर सकती हैं, जिससे ‘नियर-डेथ एक्सपीरियंस’ जैसे अनुभव होते हैं। यह जानकारी जीवन के अंत को परिभाषित करने के पुराने तरीकों पर सवाल उठाती है और अंगदान जैसे मुद्दों पर भी नई बहस छेड़ती है।


जानवरों से इंसानों तक: मस्तिष्क की समानता

यह पहला मौका था जब इंसानों में मृत्यु के दौरान मस्तिष्क की लाइव गतिविधियां रिकॉर्ड की गईं। इससे पहले चूहों पर किए गए प्रयोगों में भी मृत्यु के समय गामा तरंगें देखी गई थीं। ये प्रयोग नियंत्रित माहौल में हुए थे, लेकिन इंसानों पर यह अध्ययन अपने आप में अनोखा था। इससे पता चलता है कि मृत्यु के समय मस्तिष्क का व्यवहार शायद सभी प्रजातियों में एक जैसा हो सकता है।

एक और अध्ययन, जो 2022 में ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ, बताता है कि मृत्यु के बाद भी कुछ न्यूरॉन्स कुछ देर तक सक्रिय रह सकते हैं। यह खोज इस बात की ओर इशारा करती है कि मृत्यु एक लंबी प्रक्रिया है, न कि एक पल में खत्म होने वाली घटना।

इसके अलावा, 2018 में हुए एक शोध में पाया गया कि मृत्यु के बाद भी कुछ समय तक शरीर में खून का बहाव पूरी तरह बंद नहीं होता। यह जानकारी वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद कर रही है कि मस्तिष्क और शरीर एक-दूसरे से कितने गहरे जुड़े हैं। ये तथ्य बताते हैं कि मृत्यु सिर्फ हृदय का रुकना नहीं है, बल्कि इसमें कई जैविक बदलाव शामिल होते हैं, जो धीरे-धीरे पूरे होते हैं।


मृत्यु को समझने की चुनौती और भविष्य

मृत्यु को लेकर हमारी जानकारी अभी शुरुआती दौर में है। यह अध्ययन और इससे पहले हुए प्रयोग हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या हम जीवन और मृत्यु की सीमा को सही से समझ पाए हैं। मस्तिष्क की ये गतिविधियां न सिर्फ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि हमारा दिमाग आखिरी सांस तक काम करता रहता है। यह खोज चिकित्सा के क्षेत्र में भी नई संभावनाएं खोल सकती है, जैसे कि मृत्यु के बाद अंगों को संरक्षित करने का सही समय तय करना।

आने वाले समय में ऐसे और शोध हो सकते हैं, जो मृत्यु के इस रहस्य को और गहराई से खोलें। अभी के लिए इतना तो साफ है कि मृत्यु सिर्फ एक अंत नहीं, बल्कि एक ऐसी प्रक्रिया है जो हमें जीवन के मूल्य को समझाती है। यह हमें याद दिलाती है कि हर पल कीमती है और इसे जीने का हर मौका अनमोल है।

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