जीवन की निरंतरता: भगवद्गीता में मृत्यु के बाद का सच

by eMag360

मृत्यु के बाद क्या होता है, यह सवाल मानव इतिहास में सबसे पुराना और गहन है। प्राचीन ग्रंथों से लेकर आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों तक, इस प्रश्न ने सभी को प्रभावित किया है। फिर भी, जवाब हमेशा दूर होता जाता है, जैसे हम गलत दिशा में देख रहे हों।

विज्ञान हमें भौतिक जगत की कार्यप्रणाली, मृत्यु के बाद शरीर के परिवर्तन और चेतना के बारे में बताता है, लेकिन भगवद्गीता मृत्यु को एक नए ढंग से प्रस्तुत करती है। यह मृत्यु को अंत नहीं, बल्कि एक अनंत चक्र का हिस्सा मानती है—ऐसा कुछ जिसे डरने या उलझन में पड़ने की बजाय समझा और अपनाया जाना चाहिए।

हमारा असली स्वरूप: शरीर से परे

भगवद्गीता का प्रारंभ एक गहरे विचार से होता है—हम यह शरीर नहीं हैं। हम न तो यह मांस और हड्डियाँ हैं, न ही वे अनुभव जो हम जीवन में संग्रह करते हैं। हमारे मूल में कुछ ऐसा है जो अडिग है, जिसे मृत्यु छू नहीं सकती। श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:

“न जायते म्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।”
(गीता 2.20)

आधुनिक भाषा में इसे यूँ समझें: शरीर एक वाहन है और आत्मा उसका चालक। जब वाहन खराब हो जाता है, तो चालक खत्म नहीं होता, वह बस दूसरा वाहन ले लेता है। मृत्यु हमें नष्ट नहीं करती, यह केवल एक रूपांतरण है—हमारे समय की रैखिक धारणा में एक व्यवधान, लेकिन कहानी का अंत नहीं। हम अपने भौतिक जीवन की भागदौड़ में यह भूल जाते हैं कि हमारा असली अस्तित्व चेतना है, जो ब्रह्मांड की तरह अनंत और सतत है।

आत्मा का अनंत अस्तित्व :

श्रीकृष्ण सिखाते हैं कि आत्मा शाश्वत है—यह कोई काल्पनिक विचार नहीं, बल्कि एक सत्य है जो जन्म और मृत्यु से परे है। प्रत्येक जीवन एक विशाल कथा का एक छोटा हिस्सा है। विज्ञान सितारों की आयु और जीवन की अवधि को माप सकता है, लेकिन आत्मा को नहीं। गीता कहती है कि मृत्यु के बाद आत्मा शरीर के बंधनों से मुक्त होकर एक नए रूप में चली जाती है।

गीता में आत्मा को अनंत बताया गया है। हर जीवन इस विशाल कहानी का एक अध्याय मात्र है। श्रीकृष्ण कहते हैं:

“वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।”
(गीता 2.22)

यह पुनर्जन्म कोई चमत्कार नहीं, बल्कि जीवन चक्र का स्वाभाविक नियम है। ब्रह्मांड निरंतर बदल रहा है, और आत्मा उस प्रक्रिया का हिस्सा है। मृत्यु को अंत मानना गलत है। यह यात्रा रैखिक नहीं, चक्रीय है, और हमेशा गतिमान रहती है। इसे स्वीकार करने पर जीवन का नया अर्थ सामने आता है।

कर्म का प्रभाव :

गीता हमें यह भी बताती है कि आत्मा भले ही अनंत हो, हमारे कर्म महत्त्वपूर्ण हैं। श्रीकृष्ण कर्म के सिद्धांत को समझाते हैं—हर कार्य, विचार और शब्द ब्रह्मांड में प्रभाव डालता है। ये प्रभाव गायब नहीं होते, बल्कि हमारे पास लौटते हैं और हमारा भविष्य बनाते हैं।

कर्म कोई हिसाब-किताब नहीं, बल्कि हमारी नीयत का प्रतिबिंब है। यह वह ऊर्जा है जो हम अपने कार्यों से उत्पन्न करते हैं, और जो हमारे जीवन को प्रभावित करती है—इस जन्म में और अगले जन्मों में भी। गीता सिखाती है कि जागरूकता और करुणा के साथ किए गए कर्म हमारे भविष्य को बेहतर दिशा दे सकते हैं। जीवन और मृत्यु एक बड़े ताने-बाने का हिस्सा हैं, और हमारा हर कदम उस ताने-बाने को प्रभावित करता है।

त्याग की कला :

श्रीकृष्ण का एक कठिन लेकिन मूल्यवान उपदेश है—अपने कर्तव्य निभाओ, फल की इच्छा मत रखो। इसका मतलब यह नहीं कि हम उदासीन हो जाएँ। यह समझना है कि हम परिणामों को नियंत्रित नहीं कर सकते, केवल अपनी नीयत और कर्म की शुद्धता को। यहीं शांति मिलती है।

मृत्यु का भय हमारी आसक्ति से आता है—रिश्तों, सफलताओं और पहचान से। हम सोचते हैं कि इनके बिना हम खत्म हो जाएँगे। लेकिन श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब हम इनसे मुक्त होते हैं, तो समझते हैं कि हमारा असली स्वरूप हमारी आत्मा है, जो कभी नष्ट नहीं होती। जहाँ दुनिया हमें हर चीज़ को थामने की सिखाती है, गीता कहती है: छोड़ दो। मृत्यु से डरे बिना जियो, क्योंकि यह अंत नहीं, यात्रा का एक चरण है।

मृत्यु कोई अंत नहीं :

मृत्यु एक ऐसी सच्चाई है जिसका सामना हर किसी को करना पड़ता है। लेकिन गीता हमें सांत्वना देती है कि यह अंत नहीं है। जीवन एक सीधी सड़क नहीं, बल्कि एक अनंत मार्ग है जो हमारी समझ से परे है। इसे नियंत्रित करना या पूरी तरह समझना हमारे बस में नहीं। हमें बस जागरूकता के साथ जीना है, यह जानते हुए कि हमारे कर्म इस विशाल ब्रह्मांडीय नृत्य का हिस्सा हैं।

विज्ञान बताता है कि मृत्यु के बाद शरीर मिट्टी में मिल जाता है, लेकिन गीता कहती है कि आत्मा हमेशा रहती है। यह सत्य कोई प्रयोगशाला में सिद्ध होने वाली चीज़ नहीं, बल्कि हृदय से अनुभव करने वाली बात है। भगवद्गीता हमें यह समझ देती है कि हमारा जीवन मृत्यु से सीमित नहीं है। आत्मा की यात्रा अनंत है, और मृत्यु उस कहानी का एक अध्याय मात्र है, जहाँ समय भी एक भ्रम है।

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